ग्रहों का मानव जीवन पर प्रभाव
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार आकाश मंडल में विचरण कर रहे ग्रहों के प्रभाव का मानव प्रकृति पर असर पड़ता है। मनुष्य, पशु-पक्षी, वनस्पति और हर एक सजीव-निर्जीव पर ग्रहों का अच्छा-बुरा असर देखने को मिलता है। जन्मकुंडली में छपे ग्रह और उनके परस्पर क्रास से बनने वाले शुभ व अशुभ योग और ग्रहों की वक्री व मार्गी स्थिति का असर मनुष्यों के जीवन पर पड़ता देखा गया है। कुंडली के शुभ ग्रह अनुकूल स्थितियों में जातक के लिए शुभ समाचार तथा कुंडली के अशुभ ग्रह या शुभ ग्रहों के प्रतिकूल स्थितियों में होने पर जातक के लिए अशुभ समाचार लेकर आते हैं।
1. सूर्य : सूर्य पिता का सूचक है समाज में मान, सम्मान, यश, कीर्ति, प्रसिद्धि, प्रतिष्ठा का करक होता है | इसकी राशि है सिंह | कुंडली में सूर्य के अशुभ होने पर पेट, आँख, हृदय का रोग हो सकता है साथ ही सरकारी कार्य में बाधा उत्पन्न होती है। इसके लक्षण यह है कि मुँह में बार-बार बलगम इकट्ठा हो जाता है, सामाजिक हानि, अपयश, मनं का दुखी या असंतुस्ट होना, पिता से विवाद या वैचारिक मतभेद सूर्य के पीड़ित होने के सूचक है |
2. चंद्र : चन्द्रमा
माँ का
सूचक है
और मनं
का करक
है |शास्त्र
कहता है
की "चंद्रमा मनसो
जात:" | इसकी कर्क राशि है
| कुंडली में
चंद्र अशुभ
होने पर।
माता को
किसी भी
प्रकार का
कष्ट या
स्वास्थ्य को
खतरा होता
है, दूध
देने वाले
पशु की
मृत्यु हो
जाती है।
स्मरण शक्ति
कमजोर हो
जाती है।
घर में
पानी की
कमी आ
जाती है
या नलकूप,
कुएँ आदि
सूख जाते
हैं मानसिक
तनाव,मन
में घबराहट,तरह तरह
की शंका
मनं में
आती है
औरमनं में
अनिश्चित भय
व शंका
रहती है
और सर्दी
बनी रहती
है। व्यक्ति
के मन
में आत्महत्या
करने के
विचार बार-बार आते
रहते हैं।
3. मंगल : मंगल
सेना पति
होता है,भाई का
भी द्योतक
और रक्त
का भी
करक माना
गया है
| इसकी मेष
और वृश्चिक
राशि है
|कुंडली में
मंगल के
अशुभ होने
पर भाई,
पटीदारो से
विवाद, रक्त
सम्बन्धी समस्या,
नेत्र रोग,
उच्च रक्तचाप,
क्रोधित होना,
उत्तेजित होना,
वात रोग
और गठिया
हो जाता
है। रक्त
की कमी
या खराबी
वाला रोग
हो जाता।
व्यक्ति क्रोधी
स्वभाव का
हो जाता
है। मान्यता
यह भी
है कि
बच्चे जन्म
होकर मर
जाते हैं।
4. बुध : बुध
व्यापार व
स्वास्थ्य का
करक माना
गया है
| यह मिथुन
और कन्या
राशि का
स्वामी है
| बुध वाक्
कला का
भी द्योतक
है | विद्या
और बुद्धि
का सूचक
है | कुंडली
में बुध
की अशुभता
पर दाँत
कमजोर हो
जाते हैं।
सूँघने की
शक्ति कम
हो जाती
है। गुप्त
रोग हो
सकता है।
व्यक्ति वाक्
क्षमता भी
जाती रहती
है। नौकरी
और व्यवसाय
में धोखा
और नुक्सान
हो सकता
है।
5. गुरु : वृहस्पति
की भी
दो राशि
है धनु
और मीन
| कुंडली में
गुरु के
अशुभ प्रभाव
में आने
पर सिर
के बाल
झड़ने लगते
हैं। परिवार
में बिना
बात तनाव,
कलह - क्लेश
का माहोल
होता है
| सोना खो
जाता या
चोरी हो
जाता है।
आर्थिक नुक्सान
या धन
का अचानक
व्यय,खर्च
सम्हलता नहीं,
शिक्षा में
बाधा आती
है। अपयश
झेलना पड़ता
है। वाणी
पर सयम
नहीं रहता
|
6. शुक्र : शुक्र
भी दो
राशिओं का
स्वामी है,
वृषभ और
तुला | शुक्र तरुण है,
किशोरावस्था का
सूचक है,
मौज मस्ती,घूमना फिरना,दोस्त मित्र
इसके प्रमुख
लक्षण है
| कुंडली में
शुक्र के
अशुभ प्रभाव
में होने
पर मनं
में चंचलता
रहती है,
एकाग्रता नहीं
हो पाती
| खान पान
में अरुचि,
भोग विलास
में रूचि
और धन
का नाश
होता है
| अँगूठे का
रोग हो
जाता है।
अँगूठे में
दर्द बना
रहता है।
चलते समय
अगूँठे को
चोट पहुँच
सकती है।
चर्म रोग
हो जाता
है। स्वप्न
दोष की
शिकायत
रहती है।
7. शनि : शनि
की गति
धीमी है
| इसके दूषित
होने पर
अच्छे से
अच्छे काम
में गतिहीनता
आ जाती
है | कुंडली
में शनि
के अशुभ
प्रभाव में
होने पर
मकान या
मकान का
हिस्सा गिर
जाता या
क्षतिग्रस्त हो
जाता है।
अंगों के
बाल झड़
जाते हैं।
शनिदेव की
भी दो
राशिया है,
मकर और
कुम्भ | शारीर
में विशेषकर
निचले हिस्से
में ( कमर
से नीचे
) हड्डी या
स्नायुतंत्र से
सम्बंधित रोग
लग जाते
है | वाहन
से हानि
या क्षति
होती है
| काले धन
या संपत्ति
का नाश
हो जाता
है। अचानक
आग लग
सकती है
या दुर्घटना हो
सकती है।
8. राहु : मानसिक
तनाव, आर्थिक
नुक्सान,स्वयं
को ले
कर ग़लतफहमी,आपसी तालमेल
में कमी,
बात बात
पर आपा
खोना, वाणी
का कठोर
होना व
आप्शब्द बोलना, व कुंडली
में राहु
के अशुभ
होने पर
हाथ के
नाखून अपने
आप टूटने
लगते हैं।
राजक्ष्यमा रोग
के लक्षण
प्रगट होते
हैं। वाहन
दुर्घटना,उदर
कस्ट, मस्तिस्क
में पीड़ा
आथवा दर्द
रहना, भोजन
में बाल
दिखना, अपयश
की प्राप्ति,
सम्बन्ध ख़राब
होना, दिमागी
संतुलन ठीक
नहीं रहता
है, शत्रुओं
से मुश्किलें
बढ़ने की
संभावना रहती
है। जल
स्थान में
कोई न
कोई समस्या
आना आदि
|
9. केतु : कुंडली
में केतु
के अशुभ
प्रभाव में
होने पर
चर्म रोग,
मानसिक तनाव,
आर्थिक नुक्सान,स्वयं को
ले कर
ग़लतफहमी, आपसी
तालमेल में
कमी, बात
बात पर
आपा खोना,
वाणी का
कठोर होना
व आप्शब्द
बोलना, जोड़ों
का रोग
या मूत्र
एवं किडनी
संबंधी रोग
हो जाता
है। संतान
को पीड़ा
होती है।
वाहन दुर्घटना,उदर कस्ट,
मस्तिस्क में
पीड़ा आथवा
दर्द रहना,
अपयश की
प्राप्ति, सम्बन्ध
ख़राब होना,
दिमागी संतुलन
ठीक नहीं
रहता है,
शत्रुओं से
मुश्किलें बढ़ने
की संभावना
रहती है।
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